दबे पांव चुपके से
काली चद्दर में,
जब रात की खामोशी
जाग जायेगी,
कई सालों से बेजान
इस तालाब में,
जब चाँद की परछायी
नज़र आएगी,
कभी जब झांखोंगे
अपने अंदर तक,
रूह पे मिटटी
जम जायेगी,
ढूंढते फिरोगे
अपने आप को,
खुद्की पेहेचान भी
खो जायेगी,
सपनो को पाने की चाहत
जब हक़ीक़त में
कहीं सो जायेगी,
तब तुमको
हमारी याद आएगी,
तब तुमको
हमारी याद आयेगी.
(C) Disha Joshi.
काली चद्दर में,
जब रात की खामोशी
जाग जायेगी,
कई सालों से बेजान
इस तालाब में,
जब चाँद की परछायी
नज़र आएगी,
कभी जब झांखोंगे
अपने अंदर तक,
रूह पे मिटटी
जम जायेगी,
ढूंढते फिरोगे
अपने आप को,
खुद्की पेहेचान भी
खो जायेगी,
सपनो को पाने की चाहत
जब हक़ीक़त में
कहीं सो जायेगी,
तब तुमको
हमारी याद आएगी,
तब तुमको
हमारी याद आयेगी.
(C) Disha Joshi.