Sunday, 20 July 2014

वो लड़की

उसे ही नहीं पता
वो क्या करना चाहती है
वो लड़की जो खड़ी है मेरे सामने,
दिखने में बिलकुल मेरे जैसी,
पर काफी अलग ,
वो अपनी ही दुनिया में जीती है,
मैं तो इस दुनिया में जीती हूँ,
वो लिखना चाहती है
पुछु उसको के क्या?
मालुम नहीं वो कहती है,
अपनी ही धुन में रहती है,
थोड़ी नादान है,
और बेफिकर भी,
कभी कभी लगता है
वो खुश है वहाँ अंदर ही,
पर आँखों को भी तो भ्रम होता है,
अंदर से वो ही तोड़ रही है
तभी तो देखो दरारे है इसपे
दरारों से आईना टूट जाएगा,
बहार आएगी एकदिन
और उड़ जायेगी
आईने में खड़ी वो लड़की.

- Disha Joshi

Monday, 14 July 2014

अलफाज़



कभी कभी  ऐसी भी रात आई हैं
जब ढूंढने पर भी
मुझे अलफाज़ नहीं मिले,
बहोत बार अल्फाज़ो को
सजाने को दिल चाहा है,
पर वो मेरे अंदर से बाहर आये भी
और नहीं भी,
कभी तो अल्फ़ाज़ोने अपने आप ही
मेरे हाथों से उन्हें बुन लिया हैं,
कभी मुझको ही मेरी नज़म मैं छेद मिला हैं,
कई रात ऐसी
के सोना चाहते हुए भी
मेरे अल्फाज़ो ने मुझे सोने नहीं दिया,
मैं भी तो उनकी बातों में आ जाती हूँ.
देखते ही देखते सुबह हो जाती है,
कई रात ऐसे ही
अल्फाज़ो की जंजीरों में बंधे हुए गुज़रती है…
कई रात मैं खुद
उन ज़ंजीरों में बंधने के लिए तड़पती रहती हूँ.

- Disha Joshi