Monday 18 February 2013

खामोशियाँ

नीला सा आसमान,
चन्दा की चांदनी,
कहीं संभलते  तो कहीं
टूट के गिरते ये तारे,
इन हसीन वादियों में-
नजाने कौन सी ख्वाहिशों में
बेह रही हूँ मैं,
एक हवा झोका करीब आके
मेरे कानों में कुछ केह गया,
नींद से जागी देखूं
हर तरफ खामोशी सा रेह गया,
अँधेरा ही अँधेरा,
सुनाई दे रही है तो बस
कुछ अनकही कहानिया,
अनगिनत ये ख्वाब,
अनगिनत ख्वाहिशें,
सोचु कभी तो लगता है जैसे,
मुझको ही खामोश कर देती है
मेरी ही ख्वाहिशों की खामोशियाँ।

(C) D!sha Joshi.

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