Wednesday 28 May 2014

दिखावा

घर आते वक़्त रस्ते पर देखा
एक पेड़ गिरा पड़ा था,
सब देखने आ गए
उस पेड़ की मौत,
नजाने कितने सालों से
बारिश और तूफ़ान के आगे वो लड़ रहा होगा,
आज लड़ते लड़ते वो टूट गया.
हम भी तो टूटे हुए है,
बाहर से एक, और अंदर से
कई सारे पुरजो में बटे हुए,
हर एक पुरजा लड़ रहा है जीने के लिए,
जैसे कोई जंग चल रही है
ज़िंदगी और मौत के बीच,
ज़िंदगी जीते जीते ऐसे कई बार
हम मरे होंगे,
वो असली मौत है और
उसमे से उभरना  ज़िंदगी.
फिर एक वक़्त आएगा
जब हमारी धड़कन उन पुरजो में
बटना छोड़ देंगी ,
बिखरी पड़ी रूह से शरीर का बोझ
उठाया नहीं जाएगा,
और तब ये शरीर मर जाएगा,
पर शरीर का मारना तो बस एक दिखावा है,
जैसे आज ये पेड़ मारा हुआ दिख रहा है,
वैसे ही, हाँ
बिलकुल वैसे ही.
- Disha Joshi

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