Wednesday, 1 August 2012

वो

वो

बहेता है रगों में
साँसे जैसा
वक़्त जैसा
खुदा जैसा
दीखता नहीं
पर महेसुस होता है.

जिंदगी जैसा,
ख़ुशी जैसा,
सच्चाई जैसा,
गेहेराई सा वो,
कहेता नहीं कुछ,
एहेसास होता रहेता है.

लब्ज़ जैसा,
अलफ़ाज़ भी वो,
कहानी जैसा,
कविता जैसा,
वो वो वो.
कोन है वो?
जो हरपाल मुझमे रहेता है?

मदहोशी जैसा,
बंदगी जैसा,
दीवानगी जैसा,
ना जानू मैं
दूर है के पास?
रूह को छूता रहेता है.

वो है,
मैं हूँ,
मोहोब्बत भी.
और क्या चाहिए?
फक्र है वो
मुझमे छुपा छुपा सा रहेता है.

(C) Disha Joshi.

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