Sunday, 29 July 2012

इंतज़ार

सुहाना ये मौसम
पर खामोशी उसकी,
घने से बादल
न बरस पाने की
बेबसी उनकी,
सूखे ये पत्ते
प्यासी सी ज़मीं,
रास्ते है चुप
गलियों की रौशनी भी गूम,
दिन भी खामोश है
रात भी सन्नाटो सी,
उन्हीका इंतज़ार है
दुरी है जिनकी,
आसमान में चाँद भी
उनको ही ढूंढ़ रहा है,
बहेती ये नदी भी जैसे
गयी हो थम,
छत पे है हम
साथ यादें है उनकी,
के आजाओ अब
और कितना इंतज़ार?
वक़्त गुज़र रहा है,
जिंदगी भी चल रही है,
सबकुछ है साथ -
साथ कमी भी उनकी...!

(C) D!sha Joshi.

No comments:

Post a Comment