कितने दिनों से
किनारे पे पडा वॉ लकड़ा
लहरों से भीगता रहता था,
एक दिन किसीने उसे उठाया
समंदर के अंदर फेंक दिया.
अब कैसे जी पायेगा वो?
देखते ही देखते वो उभर आया,
तैर रहा था,
समंदर की उन बाँवरी लहरों पर.
जैसे डूबने पर अपना सारा बोझ
समंदर के अंदर ही डूबा आया हो.
वो पेड़, कैसे अपनी पत्तियों को
अपने आप से दूर कर देता है,
और वो पत्तिया भी
बिखरके अपना रास्ता बना लेती है,
अपने आप को खाली कर
वो पेड़ नयी पत्तियां लाता हैं,
जैसे साँसों को दूर कर के
नयी धड़कने पाता है.
काश उस लकड़े की तराह
हम अपना सारा बोझ डुबो सकते,
काश हम भी उस पेड़ के जैसे
अंदर से खाली हो सक्ते
काश हम भी उनकी तरह
अपने आप से आज़ाद हो सकते.
- Disha Joshi
किनारे पे पडा वॉ लकड़ा
लहरों से भीगता रहता था,
एक दिन किसीने उसे उठाया
समंदर के अंदर फेंक दिया.
अब कैसे जी पायेगा वो?
देखते ही देखते वो उभर आया,
तैर रहा था,
समंदर की उन बाँवरी लहरों पर.
जैसे डूबने पर अपना सारा बोझ
समंदर के अंदर ही डूबा आया हो.
वो पेड़, कैसे अपनी पत्तियों को
अपने आप से दूर कर देता है,
और वो पत्तिया भी
बिखरके अपना रास्ता बना लेती है,
अपने आप को खाली कर
वो पेड़ नयी पत्तियां लाता हैं,
जैसे साँसों को दूर कर के
नयी धड़कने पाता है.
काश उस लकड़े की तराह
हम अपना सारा बोझ डुबो सकते,
काश हम भी उस पेड़ के जैसे
अंदर से खाली हो सक्ते
काश हम भी उनकी तरह
अपने आप से आज़ाद हो सकते.
- Disha Joshi