Monday 5 December 2011

Ghazal.

जिंदगी से पहेले बहोत सी ख्वाहिशे बहोत सी आस थी,
तुम्हें पाके लगा वो तुम ही हो जिसकी मन को तलाश थी.

पूरा सागर खुशियों से भरा हुआ था सामने,
पर वो तुम थे जिसकी जिंदगी को प्यास थी.

किसीको पूरी तराह ना अपना सका था दिल आज तक,
तुम्ही तो थे जिसकी मौजूदगी दिल को राज़ थी.

मौत के सामने ना कोई दवा काम आई ना दुआ,
जिसको सुनके हम जिंदा हुए वो तुम्हारी ही आवाज़ थी.

कुछ दिनों से नजाने कहाँ खोये हुए थे हम,
धुन्धने गए तो तुम मिले दिशा जिसके पास थी.

(C) D!sha Joshi.

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