Saturday 29 September 2012

खामोश निगाहें,
सपनो की आहटें ज़रा,
ख्वाहिशें हज़ारो,
हौसला कम ज़रा,
पिघलते ये लम्हों
की भीड़ में मैं,
पिघलेसे दिल के साथ
गुमसुम ज़रा,
धीरे से हौले से
दिलने कहा,
ये बेजुबान खामोशीको
सुनतो ज़रा,
तन्हाई के गाने को
यूँ गुनगुना,
चांदनी की गहेरी सी
इस नदी में आज,
दो पंख फेलाए तू
उडजा ज़रा,
साँसों से साँसों की
लहेरो को जोड़,
सिसकियाँ भरना तू
भूलजा ज़रा,
दबी सी सेहेमी सी
वो हसी को तू बोल,
आ होठों पे आके
अब खुलजा ज़रा,
पिघलते ये लम्हों की
भीड़ में तू भी,
आ लम्हों के साथ
पिघलजा ज़रा.
(C) D!sha Joshi.

2 comments: