Wednesday 3 October 2012

तेरी हसी

जिंदगी सी खनखनाती है तेरी हसी,
तारो सी टिमटिमाती है तेरी हसी,
इस जिस्म में जान लाती है तेरी हसी,
मेरे गुस्से को पिघलाती है तेरी हसी,
रात को दिन बनाती है  तेरी हसी,
मेरे रूठने पे बेहेलाती है तेरी हसी,
जब जब तुझको हस्त पाया,
तेरी आँखों ने प्यार बरसाया,
ये जादू से भी परे है,
ये है कोई माया,
तेरी हसी के लिए कुछ भी कर जाऊं,
जिंदगी भी कम है गर कुछ कर पाऊं,
तेरे लिए भले कुछ न हो,
मेरे लिए सबकुछ है तेरी हसी.
- (C) D!sha Joshi

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