Thursday 4 April 2013

तेरी यादें

काले घने बादलो सी वो
आज मुझपे बरसने वाली है,
चारो और बिखरी पड़ी है
हवा की तराह ,
साँसों की तराह,
मेरे अन्दर बहार
आ जा रही है,
तेरी यादें,
वो पुराने किस्से,
वो हसी वो ख़ुशी,
बिजली सा रगों में
कडकडा ने लगा,
कितने दिनों बाद आज
फिरसे मेरे ऊपर,
तेरी यादों का साया
मंडराने लगा।
बादलों सी दबे पाँव
एक के बाद एक,
मुझसे नज़दीकियाँ
बढ़ाती जा रही है,
कुछ कहूँ, सोचूं,
या जताऊं उसके पहेले,
कमरे में हसी की आवाज़ गूंज उठी,
देखा तो कोई न था,
आईने पर नज़र पड़ी
देखूं तो तेरा चेहेरा
मुझपे प्यार बरसा रहा था,
फिर आसमान की और देखा,
बादलो की चद्दर में से
आधा मुह निकाले
वो चाँद भी मुझे देख,
मुस्कुरा रहा था।

D!sha Joshi.

No comments:

Post a Comment